असमंजस 

 

 

असमंजस 

 

रमा अनमनी सी कोर्ट में बैठी है । सामने बैठे राजन से नज़र मिली तो रोज़ की किचकिच आँखों में तैर गयी। उपेक्षा, ताने और झगड़े भी । उसकी नफासत और ऊँची शिक्षा ही निशाने पर हमेशा रहती। जाने क्यों शादी से पहले की समझ अब टकराव में बदल गई। फिर अब राजन का झुकाव उसी की सहेली टीना की ओर? नहीं यह वह बर्दाश्त नहीं कर सकती। टीना उसके पास नौकरी मांगने आई थी। उसी ने राजन से मदद के लिए कहा था। अपने ही ऑफिस में टीना को उसे बैक ऑफिस में नौकरी दिलवा दी थी। कुछ दिन ठीक चला। टीना भी अक्सर घर आने जाने लगी थी। पर अब राजन रोज़ देर से घर आता। पूछने पर खाने पर झुंझलाता और करवट ले कर सो जाता। वह बदल रहा था। राजन का कठोर चेहरा वही सब याद कराने लगा।

” कैसे नियम और रूचि है तुम्हारी? चैन से रहने नहीं देतीं? ऐसे बोलो- वैसे बैठो — अरे!फिर शादी क्यों की? अब और नहीं. ”

खुद का जवाब भी “तुम्हें ढंग से रहना नहीं आता, सुधरोगे नहीं ? कभी अपने -मेरे बारे में अच्छा नहीं सोच सकते? और उलझती गयी रमा।

— राज तटस्थ -निर्लिंप्त सा सामने बैठा था , जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।

जज साहब के सामने पेशी शुरू हो गयी ।

जज — आप दोनों तैयार हो अलग होने के लिए?

पूरी तरह?

रमा नीची नज़र कर बोली ” हाँ! सर रोज़ के झगड़े, ताने और तनाव बर्दाश्त नहीं होते ।

उदास राजन ने भी धीरे से कहा -” ऐसे जीने से मरना बेहतर सर, मैं रमा के कहने से बदल नहीं सकता। चैन से जीना चाहता हूँ “.

जज साहब ने उन्हें तौलते हुए देखा और पूछा, “ठीक है जैसी मर्ज़ी । बच्चों का क्या तय किया है।

रमा और राज दोनों ने एक साथ कहा -“मेरे पास रहेंगे ”

जज ने कहा –‘ ऐसा करिये एक बच्चा रमा और दूसरा राजन के पास रहेगा। आप दोनों एक दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे। ठीक ?

‘ नहीं ‘!पर ? चिल्ला कर दोनों बोल पड़े।

“फिर दोनों की नज़रें मिलीं तो कुछ नमी सी थी उनमें।

और जज साहब के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गयी।

 

महिमा शुक्ला,

इंदौर,भारत

0