भूखा दर्द

भूखा दर्द

हरामजादी…कुतिया.. जन्मते बप्पो खयलिं तहियो तोर भुख्हे खतम नाय होलो-कजरिया के पीठ पर ताबड़-तोड़ धौल जमाती परवतिया तो जैसे पागल हुई जा रही थी।

माँ के इस व्यवहार से हतप्रभ कजरिया को जैसे साँप सूंघ गया।नज़रे उठाकर कातर निगाह से माँ को देखने लगी जो इस समय किसी रणचंडी से कम नहीं लग रही थी।बड़े प्यार से हर आग्रह-अनुग्रह को मान लेने वाली परवतिया आज जाने क्यों जान लेने पर ही आमादा हो उठी थी।मासूम कजरिया के लिए यह समंझ पाना सम्भव न था..बेचारी…

कल गाँव के हराधन लाल की बेटी की शादी थी
, भोज-भात का ऐसा इंतजाम था कि आंखें फटी की फटी रह जा रही थी। आस-पास के सात गाँवों के हित-कुटुंब सहित बाराती-धरातियों ने छक कर माँस-मछली-मुर्गा का लुफ्त उठाया था। परवतिया के थथुने में महक साफ-साफ आ रहा था किंतु वह केवल महसूस ही कर सकती थी जबकि पाँच बर्षीय कजरिया तो लपक कर हराधन लाल के घर जा पहुंचना चाहती थी ताकि जूठे फेंके पत्तल में कुछ तो मिल जाय खाने के लिए ।
इसी सोच को लेकर वह माँ से रात से जिद्द कर रही थी किन्तु परवतिया तैयार न हुई क्योंकि उसे पता था शादी-ब्याह जैसे शुभ मुहूर्त में वह रांड औरत अगर हराधन लाल के दरवाजे पर जाकर खड़ी हुई थी उसकी एक गत न छोड़ेंगे गाँव के प्रबुद्ध लोग ,इसलिए कजरिया को समझाकर किसी तरह सुबह होने के इंतज़ार करे।

पलकों में झिलमिल रोशनी की झलक और ढोल-नगाड़ों की कर्णप्रिय आवाज़ परवतिया के आँखों में नींद नहीं आने दे रही थी जबकि कजरिया बेसुध सोई हुई थी।उसके चेहरे को निहारते हुए सोची थी सुबह पौ फटते ही हराधन लाल के घर की ओर चल पड़ेगी ताकि पत्तलों के जूठन में बचा-खुचा जो भी मिले कजरिया को खिलाकर उसकी आत्मा तक तृप्त कर देगी।

किन्तु ,हाय रे भाग्य..भोर-भोरिया नींद ही आई थी जिसकारण जब नींद खुली तो सूरज ऊपर चढ़ आया था। दिल धक्क कर उठा , भला इस बेला कुछ बचा होगा क्या?
कुछ समंझ में नहीं आया तो कजरिया का हाथ थामे लगभग भागती हुई लपक पड़ी हराधन लाल के घर की ओर..

आँखों से आँसू की बूंद छलक पड़े जब वहां पहुंचकर उसने देखा कि झुठन के ढेर पर कुत्तों के झुंड ने धींगा-मुश्ती कर रखी थी..हाय रे किस्मत..

इधर, कजरिया को इस दृश्य से क्या मतलब?
उसे तो बस इतना पता था आज मैय्या झोर-भात खिलाएगी इस लिए बार-बार मैय्या से खिलाने की जिद्द कर रही थी।

परवतिया क्या करती कुछ समंझ न आया किन्तु जब कजरिया की जिद्द आंसुओं में तब्दील हुआ तो जाने क्यों खुद पर नियंत्रण न रख सकी और कजरिया को गरियाते हुए हमलावर हो गयी।

माँ के इस व्यवहार से दुःखी कजरिया के कंठ भर आये थे किंतु आँसू सुख चुके थे।वह अपलक अपनी माँ को निहार रही थी जिसके आंखों से अविरल धार बह रहे थे..

परवतिया कुछ और बोल न सकी.बस,कजरिया का हाथ पकड़ी और चल पड़ी अपने झोपड़ी की ओर…

सोनिया अक्स
पानीपत, हरियाणा

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