‘ईदगाह’ मेरी पसंद

‘ईदगाह’ मेरी पसंद

‘ईदगाह’ हिन्दुस्तान के महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी है। यह मुझे इसलिए बहुत अच्छी लगती है क्योंकि इस कहानी का मुख्य किरदार एक छोटा सा बच्चा है हामिद । यह अपनी दादी के पास रहता है क्योंकि उसके मां-बाप दोनों की मौत हो चुकी है। बचपन के सामान्य सपने व अरमान होने के बावजूद वह अपनी दादी के बारे में सोचता है । वह अपने दोस्तों के साथ ईदगाह जाता है और ना तो बच्चों को आकर्षित करने वाले खिलौने खरीदता है और ना ही स्वादिष्ट मिठाईयां लेता है। उसके नंगे पैर जाकर उस दुकान पर थमें जहां पर की कोई बच्चा नहीं रुका । वह दादी द्वारा मेले के लिए दिए गए पैसों से दादी के लिए ही एक चिमटा खरीदता है क्योंकि रोज़ाना रोटी बनाते वक्त दादी का हाथ जल जाता है।

एक अत्यंत मर्मस्पर्शी कहानी जिसको पढ़ने के बाद एक खूबसूरत एहसास मन में बाद में भी रहता है क्योंकि ज़िंदगी का अर्थ केवल अपनी ही ख्वाहिशों और सपनों के अलावा भी बहुत कुछ है। किसी दूसरे के अनकहे दर्द को महसूस करना और उसकी इज्ज़त करना भी ज़रूरी है और उसके लिए उम्र का कोई बंधन नहीं है ।

बच्चों का अत्यंत सजीव चित्रण है । चाहे शहर की कोठियों में आम और लीची के पेड़ों पर कंकड़ मारकर दूर भाग जाना और चौकीदार की आवाज़ पर हंसना या हामिद का भोलापन जो जिन्नात बहुत बड़े होते हैं पर यकीन करना । हामिद के पिता गत वर्ष हैजे की भेंट हो गए और मां भी एक दिन मर गई लेकिन हामिद पहले जितना प्रसन्न रहता है । “उस नन्ही सी जान को तो यही बताया गया है कि उसके अब्बा जान रुपए कमाने गए हैं और अम्मी जान अल्लाह मियां के घर से बड़ी अच्छी अच्छी चीज है लाने गई है। इसीलिए हामिद की प्रसन्नता में कोई कमी नहीं है और हो भी क्यों ?” बाल मनोविज्ञान की झलक कि, “आशा तो बड़ी चीज़ है और फिर बच्चों की आशा – उनकी कल्पना तो राई को पर्वत बना लेती है,” कितनी प्यारी कितनी सही।

आज के विभाजित समाज के लिए कितना प्रासंगिक चित्रण है, ईद की नमाज़ का-” जैसे बिजली की लाखों बत्तियां “सबने एक साथ सजदे किए भातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।” क्या कल्पनाशीलता है ! सभी छोटे-बड़े,अमीर-गरीब वर्ग भावना से ऊपर उठकर धार्मिक प्रेम की गहरी समझ और सहानुभूति से भरपूर, पूरे उत्साह में भरे हुए, बड़े -बूढ़ों के साथ बालकों के दल का ईदगाह की तरफ जाना। आज के आधुनिक युग में जब पड़ोसी एक दूसरे को नहीं जानते लेकिन कहानी में कितने प्यारे ढंग से इस को कहा गया है,” किसी के कुरते में बटन नहीं है पड़ोस के घर से सुई धागा लाने को दौड़ा जा रहा है।”
शहर और गांव के बीच जो भिन्नता हैं उनका बहुत ही सजीव विवरण। शहर की क्लब में मेम साहब का बैट पकड़ना और गांव में भैंस को पकड़ने के लिए दौड़ना ऐसी तुलना कि आप से मुस्कुराए बिना ना रहा जाए।

आर्थिक विषमताओं और आधारभूत यथार्थ से जुड़ी हुई कहानी जो अत्यंत ही सहज भाषा में दिलों दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ जाती है । ।विषय की व्यापकता,चरित्र चित्रण की सूक्ष्मता, मार्मिक संवेदना, सजीव वातावरण व प्रवाहमय शैली- ‘ईदगाह’ अपने आप में यह सब कुछ समेटे हुए हैं। प्रवाह योग्य, मुहावरेदार, सुगम, सुबोध, साधारण बोलचाल की पात्र अनुकूल भाषा कहानी में चार चांद लगा देती है। शब्दों का प्रयोग, “निगोड़ा उनकी बला से, छाती पीट लेना”,अनूठा है ।

मुझे सबसे अच्छी बात यह लगी कि यह एक चरित्र प्रधान कहानी है और एकल घटना में ही अनेक समस्याओं को धीमे से सरका कर इंगित किया गया है। यह केवल कहानी नहीं है बल्कि जीवन और उसके पात्रों के अंतर्विरोध की सार्थक अभिव्यक्ति है। साथ ही परिस्थिति विशेष में पात्र के मन में तदनुकूल भावों के उदय का तथा उनके अनुरूप व्यवहार और चेष्टाओं का चित्रण कहानी में यथार्थ लाकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है।

इसमें आदर्शवाद भी है क्योंकि छोटा सा बच्चा हामिद भी जुझारू है, वह मेले में खिलौने, मिठाई, आदि ना लेने के लिए तर्क करता है । बच्चों जैसी वस्तुएं नहीं लेता है और दादी को जब चिमटा खरीदने के बारे में बताता है तो ‘अपराधी भाव’ से उत्तर देता है । कहानीकार यह दिखाना चाहते हैं कि किस प्रकार हामिद जैसों का वर्ग, अपनी वास्तविक स्थिति को जानते हुए अपने सीमित साधनों से सही मार्ग चुनकर अपने समाज का निर्माण करता है ।

दादी तो विपत्तियों के साथ लोहा ले ही रही है, लेकिन हामिद भी ऐसी परिस्थितियों में, जिसमें अधिकांश बच्चे अवसाद के शिकार हों अत्यंत प्रसन्न है। यह एक बहुत ही समझदार सोच का परिचय देता है जो शायद उसकी नन्ही उम्र से कहीं अधिक है। हामिद का किरदार हर दौर में प्रासंगिक है आज के उपभोक्तावाद व सामाजिक मूल्यों के ह्रास के वातावरण में और भी। इस दौर का हामिद कौन है ? ? ?

डॉ अनीता भटनागर जैन
दिल्ली

0
0 0 votes
Article Rating
301 Comments
Inline Feedbacks
View all comments