शिक्षा और नयी नीति

शिक्षा और नयी नीति

शिक्षा वह आधार है,जो किसी भी व्यक्ति या देश को आत्मनिर्भर बनाती है, जीवन में बेहतर संभावनाओं को प्राप्त करने के विभिन्न अवसरों के रास्तों का निर्माण करती है और उज्जवल भविष्य के विकास और उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए दरवाजे खोलती है। वैसे तो शिक्षा के उपयोग कई हैं, परंतु, बदलते समाज और बदलती परिस्थितियों के अनुसार उसे समय-समय पर नई दिशा देने की जरूरत है क्योंकि शिक्षा का उच्च स्तर ही देश,समाज,परिवार और व्यक्ति को विश्वस्तर पर पहचान बनाने और सम्मान दिलाने में सहायक होता है।आज की तकनीकी दुनिया में शिक्षा कई उद्देश्यों को एक साथ पूरा करने में सहायक है,इसीलिए, जरूरी है कि शिक्षा संबंधी नीतियाँ समय के अनुकूल हों। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमारे देश में भी समय-समय पर शिक्षा नीति में बदलाव देखा गया है।

देश में पहली शिक्षा नीति 1968 में शुरू की गई थी। उसके बाद 1986 में दूसरी शिक्षा नीति बनाई गई, जिसमें 1992 में कुछ बदलाव किए गए। अब तक देश में पुरानी शिक्षा नीति ही चल रही थी,जिसे बदले हुए सामाजिक परिपेक्ष्य में बदलने की नितांत जरूरत महसूस की जा रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए पूर्व इसरो प्रमुख कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति बनी, जिसने नई शिक्षा नीति 2020 की रूपरेखा तैयार की और जिसे 29 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा मंजूरी दी गई। इस संबंध में ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ का नाम बदल दिया गया और उसे ‘शिक्षा मंत्रालय’ बना दिया गया। इसके अतिरिक्त यह भी निर्धारित किया गया कि देश में शिक्षा पर संपूर्ण घरेलू उत्पाद का 6% खर्च किया जाएगा जो अभी तक 4.43% है।तकनीकी क्रांति और वैश्वीकरण को ध्यान में रखते हुए शिक्षा की नीतियों में कई जरूरी बदलाव किए गए हैं–

1)विद्यालय की शिक्षा–

स्कूल की शिक्षा जो अब तक 10 + 2 थी,नयी शिक्षा नीति की तहत 5 + 3 + 3 + 4 कर दी गई है। इसके अंतर्गत जो बच्चा 6 वर्ष से पढ़ाई आरंभ करता था, अब 3 वर्ष की उम्र से पढ़ाई आरंभ कर सकता है।

(क) 5 + 3 + 3 + 4 का मतलब इस प्रकार है…>

(¡)3 साल का प्री-स्कूल और उसके बाद क्लास 1+ क्लास 2 = 5 साल

(¡¡) क्लास 3 + क्लास 4 +क्लास 5 = 3 साल

(¡¡¡) क्लास 6 + क्लास 7 + क्लास 8 = 3 साल

(¡v) क्लास 9 + क्लास10+ क्लासिक11+ क्लास 12 = 4 साल

अर्थात् प्री-स्कूल के शुरुआती साल भी अब विद्यालय की शिक्षा में जोड़े जाएंगे और यह फार्मूला सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूलों में लागू होगा।

फाउंडेशन स्टेज

पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे। फिर अगले दो साल कक्षा एक एवं दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे। इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। मोटे तौर पर एक्टिविटी आधारित शिक्षण पर ध्यान रहेगा। इसमें तीन से आठ साल तक की आयु के बच्चे कवर होंगे। इस प्रकार पढ़ाई के पहले पांच साल का चरण पूरा होगा।

प्रीप्रेटरी स्टेज

इस चरण में कक्षा तीन से पांच तक की पढ़ाई होगी। इस दौरान प्रयोगों के जरिए बच्चों को विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी। आठ से 11 साल तक की उम्र के बच्चों को इसमें कवर किया जाएगा।

मिडिल स्टेज

इसमें कक्षा 6-8 की कक्षाओं की पढ़ाई होगी तथा 11-14 साल की उम्र के बच्चों को कवर किया जाएगा। इन कक्षाओं में विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। कक्षा छह से ही कौशल विकास कोर्स भी शुरू हो जाएंगे।

सेकेंडरी स्टेज

कक्षा नौ से 12 की पढ़ाई दो चरणों में होगी जिसमें विषयों का गहन अध्ययन कराया जाएगा। विषयों को चुनने की आजादी भी होगी।

(ख)तीन भाषाएँ–

नयी नीति में कक्षा 5 तक मातृभाषा अथवा स्थानीय भाषा में पढ़ाई कराने की बात कही गई है। इसके अतिरिक्त, संस्कृत की पढ़ाई पर भी जोर दिया गया है। स्कूल की शिक्षा में तीन भाषाओं में पढ़ाई की बात कही गई है, जिसमें दो भाषाएं भारतीय होगीं। इस संबंध में तर्क दिया गया है कि अंग्रेजी का विरोध नहीं है पर मातृभाषा में या स्थानीय बोली में पढ़ाई होने पर बच्चे तथ्यों को अच्छी तरह आत्मसात कर पाएँगे, उनकी रुचि बढ़ेगी और आगे चलकर उनका बेस मजबूत होगा। अंग्रेजी एक विषय की तरह तो पढ़ाया ही जाएगा।बहुत से विकसित देशों में यह प्रयोग अत्यंत सफल देखा गया है, इसीलिए नई शिक्षा नीति के अनुसार कम से कम पांचवी कक्षा लेकिन यथासंभव आठवीं कक्षा या उसके बाद भी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा,स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा हो सकती है।

ग)बोर्ड परीक्षा–

बोर्ड परीक्षाओं में पहले भी बदलाव किए गए थे… कभी बोर्ड परीक्षा को वैकल्पिक बनाया गया, कभी नंबर की बजाय ग्रेड की बात कही गई,परंतु अब परीक्षा के तरीके में बदलाव की बात कही गई है। बोर्ड परीक्षा अब दो बार होगी लेकिन परीक्षा में छात्रों की क्षमता का आकलन किया जाएगा न कि उनकी याददाश्त का। सरकार का मानना है कि इससे छात्रों पर नंबर का दबाव घटेगा। इसके अलावा कक्षा 3,5 और 8 में भी परीक्षाएँ होंगी, जो राज्य सरकारें लेंगी और इनके गाइडलाइन्स शिक्षा मंत्रालय द्वारा तैयार किए जाएँगे।प्रदर्शन,आकलन, समीक्षा और समग्र विकास हेतु ज्ञान के विश्लेषण के लिए PARAKH नामक नया राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र स्थापित किया जाएगा। छात्र सिर्फ दो बार बोर्ड परीक्षा दे सकेंगे–एक मुख्य परीक्षा और एक सुधार के लिए, यदि वांछित हो।

दसवीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव किए जाएंगे।बोर्ड परीक्षा में मुख्य जोर ज्ञान के परीक्षण पर होगा ताकि छात्रों में रटने की प्रवृत्ति खत्म हो। बोर्ड परीक्षाओं को लेकर छात्र हमेशा दबाव में रहते हैं और ज्यादा अंक लाने के चक्कर में कोचिंग पर निर्भर हो जाते हैं। लेकिन भविष्य में उन्हें इससे मुक्ति मिल सकती है। शिक्षा नीति में कहा गया है कि विभिन्न बोर्ड आने वाले समय में बोर्ड परीक्षाओं के प्रैक्टिकल मॉडल को तैयार करेंगे। जैसे वार्षिक, सेमिस्टर और मोड्यूलर बोर्ड परीक्षाएं।

नई नीति के तहत कक्षा तीन, पांच एवं आठवीं में भी परीक्षाएं होगीं। जबकि 10वीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं बदले स्वरूप में जारी रहेंगी।

बच्चों की परफॉर्मेंस की आकलन-पद्धति और उनकी

रिपोर्ट कार्ड में बदलाव होगा। उनका तीन स्तर पर आकलन किया जाएग। एक स्वयं छात्र करेगा, दूसरा सहपाठी और तीसरा उसका शिक्षक। नेशनल एसेसमेंट सेंटर-परख बनाया जाएगा जो बच्चों के सीखने की क्षमता का समय-समय पर परीक्षण करेगा। सौ फीसदी नामांकन के जरिए पढ़ाई छोड़ चुके करीब दो करोड़ बच्चों को फिर दाखिला दिलाया जाएगा।

2)उच्च शिक्षा–

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी कई बदलाव किए गए हैं। अब ग्रेजुएशन में छात्र 4 साल का कोर्स पढ़ेंगे। इसमें बीच में कोर्स छोड़ने का भी प्रावधान दिया गया है।

एक साल के बाद छोड़ने पर सर्टिफिकेट;दूसरे साल के बाद डिप्लोमा; तीसरे साल के बाद डिग्री और चौथे साल पूरे करने के बाद शोध के साथ की डिग्री दी जाएगी। इस संबंध में अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिले हेतु नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा परीक्षा कराई जाएगी, जो 2022 सत्र से लागू होगी और वर्ष में दो बार कॉमन कॉलेज प्रवेश परीक्षा द्वारा ली जाएगी। ब्रेक के बाद डिग्री पूरा करने के लिए मिड टर्म ड्रॉपआउट का विकल्प दिया जाएगा। स्नातक कार्यक्रम प्रकृति में बहु विषयक होंगे और कला तथा विज्ञान के बीच कोई कठोर अलगाव नहीं होगा। मेजर और माइनर विषयों का प्रावधान होगा,जिसके अंतर्गत विज्ञान के छात्र भी कला,इतिहास और अन्य ऐसे रुचि के विषय पढ़ सकेंगे।भारतीय कला, भाषाओं और संस्कृति को सभी स्तरों पर बढ़ावा दिया जाएगा और 2040 तक आईआईटी जैसे उच्च संस्थान बहु- विषयक बन जाएँगे।लॉ और मेडिकल की पढ़ाई में भी परिवर्तन हेतु नई नीति बनाई जाएगी।

पोस्ट ग्रेजुएट में भी तीन तरह के विकल्प होंगे–

पहला; 2 साल का मास्टर्स, जिन्होंने 3 साल का डिग्री ग्रेजुएशन कोर्स किया है।

दूसरा; 4 साल के शोध सहित डिग्री वालों के लिए 1 साल का मास्टर कोर्स होगा।

तीसरा; 5 साल का इंटीग्रेटेड प्रोग्राम, जिसमें ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन एक साथ होगा।

अब एम.फिल. की नीति बंद कर दी गई है और पीएचडी के लिए 4 साल की शोध के साथ के ग्रेजुएशन डिग्री अनिवार्य होगी।

उच्च शिक्षा में स्कॉलरशिप का भी प्रस्ताव है, जिसके लिए नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल के दायरे को अधिक विस्तृत किए जाने की बात कही गई है।प्राइवेट संस्थाएँ,जो उच्च शिक्षा देंगी,उन्हें 25% से 100% तक स्कॉलरशिप अपने 50% छात्रों को देना होगा। उच्च शिक्षा संस्थाओं को ग्रांट देने का काम हायर एजुकेशन ग्रांट्स कमिशन करेगा। विश्वविद्यालय का दर्जा समाप्त होगा और संबद्ध महाविद्यालयों की प्रणाली को 15 वर्षों में चरणबद्ध किया जाएगा और उन्हें अधिक स्वायत्तता दी जाएगी। इसके अतिरिक्त,विश्व के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में से चयनित विश्वविद्यालयों को भारत में काम करने की सुविधा प्रदान की जाएगी।

विश्लेषण–

नयी शिक्षा नीति के अंतर्गत पढ़ने लिखने में और संख्यात्मक ज्ञान की बुनियादी योग्यता पर जोर दिया गया है,जिससे बच्चों में विश्लेषणात्मक क्षमता को बढ़ाई जा सके।विद्यालय शिक्षा की 5 + 3 + 3 + 4 संरचना से शिक्षा के अधिकार का दायरा बढ़ गया है। पहले यह 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए था अब वह 3 से 18 साल के बच्चों के लिए हो गया है तथा उनके लिए प्राथमिक, माध्यमिक और उत्तर माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य हो गया है। नई नीति के तहत बच्चों की बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर फोकस रहेगा, पाँचवी कक्षा तक छात्रों की भाषा, गणित, सामान्य ज्ञान के साथ-साथ इंटरएक्टिव स्किल पर ध्यान दिया जाएगा जिससे बच्चों को खेल-खेल में विकसित होने का मौका मिलेगा।छात्रों के लिए मल्टी डिसीप्लिनरी कोर्स होंगे और उनकी रुचि के मुताबिक संगीत, खेल आदि क्षेत्रों में भी आगे बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। इस दौरान एक स्केल ऐसा भी होगा जो उनके भविष्य में आजीविका के तौर पर काम आ सकता है। नई शिक्षा नीति छात्रों के हुनर को निखारने में मदद करेगी,भेड़ चाल जैसी व्यवस्था बंद हो सकेगी जिससे देश और छात्र का भविष्य सुधर सकेगा।इसके अतिरिक्त, विज्ञान के छात्र कला या इतिहास जैसा सब्जेक्ट भी पढ़ सकेंगे या कला के छात्र विज्ञान जैसा कोई विषय अपनी रुचि के अनुसार पढ़ सकेंगे। कोई परेशानी हो तो छात्र सब्जेक्ट ड्रॉप भी कर सकता है, हालांकि डिग्री मुख्य संकाय के आधार पर ही मिलेगी। छात्र वोकेशनल ट्रेनिंग के साथ अप्रेंटिस भी छठी कक्षा के बाद कर सकते हैं, जिससे उन्हें व्यवहारिक ज्ञान और रोजगार में मदद मिलेगी।

शिक्षा नीति ऐसी होनी चाहिए कि छात्र को उसके जुनून के मुताबिक लक्ष्य प्राप्ति की राह में मदद मिले,इसी हिसाब से मल्टीपल एन्ट्री और एक्जिट की व्यवस्था की गई है,जो शिक्षा नीति को समय और छात्रों की रुचि और रोजगार की दृष्टि से उपयोगी बनाती है।

प्रारंभिक शिक्षा में मातृभाषा को जोड़ना भी एक अहम् कदम है।बच्चा अपनी भाषा में चीजों को अच्छी तरह समझेगा और इस तरह उसका आधार मजबूत हो सकेगा,जो आगे की पढ़ाई की संकल्पना में उसके लिए सहायक होगा। परन्तु,यहाँ प्रश्न यह भी है कि क्या स्थानीय भाषाओं में पठनीय सामग्रियाँ उपलब्ध हैं,या नहीं? इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के एक प्रोफेसर का कहना है कि यदि सरकार यह नीति ला रही है तो उसे सुनिश्चित करना होगा कि वह पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण सामग्री स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराए।एक वरिष्ठ पत्रकार इस संबंध में कहते हैं कि इस व्यवस्था को पूर्ण समर्थन तभी मिल पाएगा जब सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सरकारी प्राथमिक स्कूलों से लेकर सबसे महंगी और एलीट स्कूलों में भी यह व्यवस्था लागू हो,अन्यथा यह देश के गरीबों,दलितों,आदिवासियों,पिछड़ों और उत्पीड़ित तबकों के साथ अन्याय माना जाएगा।

विकलांग बच्चों के लिए विभिन्न नए प्रावधान बनाये गए हैं।

विकलांग बच्चों को क्रॉस विकलांगता प्रशिक्षण, संसाधन केंद्र, आवास, सहायक उपकरण, उपयुक्त प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण और अन्य सहायता तंत्रों के अनुरूप शिक्षकों के समर्थन के साथ, नींव चरण से उच्च शिक्षा तक नियमित स्कूली शिक्षा प्रक्रिया में पूरी तरह से भाग लेने में सक्षम बनाया जाएगा। उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप। प्रत्येक राज्य / जिले को कला-संबंधी, कैरियर-संबंधी और खेल-संबंधी गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक विशेष बोर्डिंग स्कूल के रूप में “बाल भवन” स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। मुफ्त स्कूल के बुनियादी ढांचे का उपयोग समाज चेतना केंद्रों के रूप में किया जा सकता है।

प्रौढ़ शिक्षा के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रौद्योगिकी-आधारित विकल्प जैसे ऐप, ऑनलाइन पाठ्यक्रम / मॉड्यूल, उपग्रह-आधारित टीवी चैनल, ऑनलाइन किताबें, और आईसीटी से सुसज्जित पुस्तकालय और वयस्क शिक्षा केंद्र आदि विकसित किए जाएंगे।इसके अतिरिक्त शारीरिक शिक्षा देने की ओर भी ध्यान दिया गया है। इसके अंतर्गत

स्कूल के सभी स्तरों पर सभी छात्रों को नियमित रूप से खेल और खेल, खेल, योग, मार्शल आर्ट, नृत्य, बागवानी, और बहुत कुछ, जिसमें शिक्षकों और सुविधाओं की स्थानीय उपलब्धता के अनुसार शारीरिक गतिविधि और व्यायाम में भाग लेने के अवसर होंगे।

सबसे बड़ा सवाल इस बात को लेकर है कि जो नीतियाँ बनाई गयीं हैं, उन्हें जमीन पर कैसे उतारा जाएगा?अगर ये व्यवस्थित तरीके से लागू नहीं हो पायीं तो शैक्षणिक अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो विद्यार्थियों और देश के भविष्य के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होगी।

इस संबंध में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का कहना है– “नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के नए भारत की नींव रखेगी और रिसर्च और एजुकेशन के गैप को खत्म करने में यह शिक्षा नीति अहम भूमिका निभाएगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि अब इसे जमीन पर उतारने के लिए जो भी करना होगा, वो जल्द किया जाएगा।उन्होंने कहा कि आपको इसे लागू करने में जो भी मदद चाहिए, मैं आपके साथ हूँ।

शिक्षा नीति में देश के लक्ष्यों का ध्यान रखना जरूरी है, ताकि भविष्य के लिए पीढ़ी को तैयार किया जा सके। ये नीति नए भारत की नींव रखेगी। पीएम ने पुनः इस बात पर जोर दिया कि भारत को ताकतवर बनाने और नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए अच्छी शिक्षा जरूरी है।नई शिक्षा नीति में ढेर सारी किताबों की अनिवार्यता पर जोर कम किया गया है।इसमें what to think की बजाय how to think पर फोकस किया गया है।

नई नीति का लक्ष्य भारत के स्कूलों और उच्च शिक्षा प्रणाली में इस तरह के सुधार करना है कि भारत देश विश्व में ‘ज्ञान का सुपरपॉवर’ कहलाए।

नई शिक्षा नीति के विषय में बुद्धिजीवियों,आम जनता एवं शिक्षाविदों की मिलीजुली प्रतिक्रिया रही है। जहाँ अधिकांश लोगों ने इन बदलावों का स्वागत किया है,वहीं इस के लक्ष्य को पूरा करने पर संदेह भी किया जा रहा है। कुल मिलाकर देखें,तो यदि यह शिक्षा नीति पूर्णतया अपने आप को वास्तविक रूप में जमीन पर उतार पाई तो बिना किसी भेदभाव के बड़े शहरों, छोटे शहरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों के सभी विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा और देश उच्चतर शिक्षा पद्धति और विकास की ओर अग्रसर हो पाएगा।

अर्चना अनुप्रिया
अधिवक्ता, शिक्षिका,लेखिका
पटना, बिहार

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