अम्फन के बाद की शाम

अम्फन के बाद की शाम

आज शाम आकाश ,
उजले-नीले बादलों से आच्छादित।
यूँ प्रतीत हो रहा जैसे मानो,
प्रकृति अपने आलय के छत को,
सजा रही अनेक गुब्बारों से।
जो हवा के साथ गतियमान हैं,
कभी बदलते आकार, रंग कभी।
सजावट की गुणवत्ता नाप रहे हो जैसे ,
किसी गृहस्वामिनी के गृह -सज्जा के प्रयासों की तरह।
हवा शांत ,ठंडी , आह्लादित करती हुई,
जब छू रही हैं तन को ,
नजर जाती हैं विशाल वृक्षों पर,
जिनके पत्ते आज भी मुडें-तुड़े से हैं,
कल के झंझावत के थपेड़ों को झेलकर ,
जैसे इनके गालों पर अनगिनत थप्पड़ जड़े गए हो,
और मुँह फुलाए खड़े हों अभी तक ये।
अम्फन की हवा की तीव्रता क्या प्रतीक है?
उन्माद का , सीमाविहीन पागलपन का ,
विनाश से दूर रहने के लिए,
आवश्यक हैं निर्धारण सीमाओं का ,
लेकिन अगर सीमा न टूटे,
तो गढ़ी जाएं कैसे नयी परिभाषाएं?
सीमाओं का टूटना वर्जित नहीं,
पर दिशा सकारात्मक हों,
आवश्यक है हो हितकारक,
उन्माद हो तो सृजन का , विकास का,
प्रकृति तू हमेशा सीखाती ही रहेगी क्या?

रीता रानी
जमशेदपुर , झारखण्ड

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