मैं “बुद्ध” न बन पाई

मैं “बुद्ध” न बन पाई

आसान था तुम्हारे लिए सब जिम्मेदारियों से मुहँ मोड़, बुद्ध हो जाना ,
क्यूंकि पुरुष थे तुम।
एक स्त्री होकर बुद्ध बनते, तो जानती मैं ।

जिस दिन “मैं” के अन्तर्द्धन्द
पर विजय मिल जाएगी
निर्वाण की राह भी
बेहद सुगम हो जाएगी।

सब त्याग कर तुमने
उस “मैं” पर विजय पा ली
और कहलाए “बुद्ध”।

पर मेरा “मै” तो खत्म हो गया था तभी
जब तुमसे विवाह-बन्धन में बंधी थी।
किन्तु मैं बुद्ध न बन पाई तब भी ।
क्यूंकि मैं एक स्त्री थी , पुरुष नहीं।


समिधा नवीन वर्मा

साहित्यकार
सहारनपुर, उत्तरप्रदेश, भारत ।

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