नवजात शिशु की देखभाल

 

नवजात शिशु की देखभाल

शिशु का टीकाकरण

जन्म के समय- हैपीटाईटिस बी ,बी.सी.जी और पोलियो का टीका
दो माह बाद- पोलियो, डी.पी.टी,एच.आई.बी और
हैपीटाईटिस बी
तीसरे माह में -पोलियो और डी.पी.टी
चौथी माह में -पोलियो और डी.पी.टी और एच.आई.वी पांचवी माह में -पोलियो
छठे माह में- हैपीटाईटिस और एच.आई.वी
नौवे माह में -खसरा
बारहवे माह में -चिकनपॉक्स और हैपीटाईटिस ए
अठारहवे माह में-पोलियो,डी.पी.टी,हैपीटाटिस,एच.आई.वी
दूसरे साल में -टाइफाइड
तीन बर्ष में- पोलियो, डी.पी.टी और हैपीटाइटिस बी
पांच वर्ष में- टेटनेस

नवजात शिशु की देखभाल

नवजात शिशु छः माह तक होने तक दिन में करीब 18 घंटे तक सोता है ।जन्म के बाद शिशु के शरीर पर लाल व नीले रंग के कुछ निशान होते हैं जो कि कुछ माह में धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं ।शिशु को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। उसे बिस्तर पर पूरा ढक कर नहीं रखना चाहिए। बच्चे की रोने के कई कारण होते हैं

*जैसी भूख लगना ,
*कपड़ा गीला होना ,
*सर्दी जुकाम,
*पेट दर्द या गैस
*बच्चा अकेलापन महसूस करने पर भी रोता है

सामान्यतः बच्चा 24 घंटे में पोट्टी करता है ।बच्चे की पहली पोट्टी काली चिकनी होती है ।तीन-चार दिन बाद बच्चे की पोट्टी का रंग पीला होने लगता है। बच्चा दिन में कई बार पोट्टी करता है। नवजात शिशु के पैदा होने से 36 घंटे के अंदर पेशाब करनी चाहिए। अगर पेशाब न हो तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए ।

बच्चों को नहलाते समय सावधानी बरतनी चाहिए। कभी भी बच्चे को टब या बाल्टी में नहलाते वक्त अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। बच्चे को नहलाने के लिए सामान्य साबुन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बच्चे के कान में पानी न जाए इसके लिए कान में थोड़ी रूई लगा देनी चाहिए और नहलाने के बाद उसे फेंक देना चाहिए। बच्चे को लगाने के पाउडर अलग से आते हैं ।बच्चे के मलद्वार को रुई गिला करके हल्के से पोछना चाहिएनहीं तो वहां खरोंचें आ सकती है।

नवजात शिशु को दूध की मात्रा और भोजन

नवजात शिशु के लिए मां का दूध अमृत होता है ।प्रसव के कुछ दिनों तक मां के स्तन से गाढ़ा पीला दूध निकलता है ।इसे कोलस्ट्रम कहते हैं ।इस दूध में जादुई गुण होते हैं। यह दूध इम्यून पावर से भरपूर होता है ।ये दूध शिशु के लिए सुपाच्य होता है ।मां के दूध से बच्चे को कोई एलर्जी या शिकायत नहीं होती है जबकि बाहर की दूध से उसे दस्त या दूसरी बीमारियां हो सकती हैं ।माँ के सीने से लगकर स्तनपान करने से मां और बच्चे के बीच आत्मीयता पनपता है ।मां बच्चे को कभी भी स्तनपान करा सकती है पर बोतल से दूध देने से पहले दूध को पकाना पड़ता है, बोतल को गर्म पानी से साफ करना पड़ता है । कभी भी बच्चे को बोतल का बचा हुआ दूध दुबारा नहीं पिलाना चाहिए।

स्तनपान कराते समय सावधानियां

बच्चे को स्तनपान कराते वक्त उसकी नाक पर जोर नहीं देना चाहिए जिससे कि उसे श्वास लेने में तकलीफ हो। नवजात शिशु को केवल मां का दूध ही देना चाहिए। उन्हें अलग से पानी देने की जरूरत नहीं होती है।
स्तनपान कराते समय बच्चे का सिर हमेशा ऊपर की ओर रखना चाहिए और बैठकर ही स्तनपान कराना चाहिए ।
स्तनपान के साथ बच्चा कुछ मात्रा में हवा भी पेट में ले जाता है जिससे पेट में गैस बनने लगती है । शिशु को छाती से लगा कर पीठ पर थपकी देने से शिशु की गैस निकल जाती है।
स्तनपान के बाद स्तनों को गीले कपड़े से साफ करना चाहिए। बच्चे अधिकतर एक ही करवट सोते हैं जिससे उनकी पाचन प्रक्रिया प्रभावित होती है ।मां को बच्चे की करवट बदलते रहना चाहिए ।
यदि बच्चे को बीमारी के कारण आई.सी.यू में एडमिट किया गया है तभी बच्चे को मां का दूध ही देना चाहिए। चाहे इसके लिए मां का दूध निकाल कर बूंद-बूंद ही पिलाने पडे।
दो से तीन माह के शिशु को गाय या भैंस का दूध दिया जा सकता है पर स्तनपान न होने की दशा में ही।
चार माह के शिशु को मां के दूध के अलावा मला हुआ केला ,मला हुआ आलू या सेब,शहद पानी में मिलाकर, दाल का पानी दिया जा सकता है ।
छः माह के शिशु को पतली दलिया खिचड़ी ,दाल का पानी, बिस्कुट ,मले हुए फल और रस, सब्जियों का सूप, अंडे का पीला भाग,दही दिया जा सकता है ।
दस माह के बच्चे को ताजी रोटी ,सब्जी, दाल, चावल ,फल,वगैरह दिया जा सकता है पर मिर्च मसाला और तली भुनी चीजें अभी नहीं देनी चाहिए।

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