यथा नाम तथा गुण

यथा नाम तथा गुण

दिव्या जी से मेरा परिचय भले ही ऑनलाइन मोड का हो पर वे बहुत आत्मीय हैं। उनके अनेक अनेक रूप हैं, वे एक साथ एकोअहम बहुस्याम हैं। कवि, रचनाकार, संपादक, आयोजक, अनेक पुरस्कारों से सम्मानित, कम शब्दों मे गहरी और गंभीर बात कह जाने वाली, हीरे की माफ़िक हैं, रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरो मोल। उनका नाम ही दिव्या नहीं, वे सचमुच में दिव्य गुणों से ओतप्रोत हैं। मुझे कभी कभी बहुत हैरानी होती है कि एक व्यक्ति इतना इतना काम इतनी सुघड़ तरीके से कैसे कर पाता है। उनका भारत आगमन हुआ पर अपनी व्यस्तता के चलते मैं ही उनसे मिलने नहीं जा सकी। बाद में बड़ा पछतावा हुआ कि एक प्रेरक व्यक्तित्व से मिल लेती तो कितना अच्छा होता। अब पछताए होत क्या जब समय निकल गया।

किसी भी व्यक्ति के अनेक अनेक रूपों में मुझे उसका एक अच्छा इंसान होना सबसे अधिक भाता है, बस जो मानवीयता प्रखर हो तो बाकी सब सध जाता है। और मुझे यह कहते बहुत हर्ष है कि मेरी प्रिय सखी दिव्या सबसे पहले मनुष्य है बाकी सब बाद में। संस्थान से मोटूरी सत्यनारायण पुरस्कार प्राप्त हैं, अभी उनका रचनाकर्म संस्थान से प्रकाशित हुआ ही है।

वातायन संगोष्ठि साप्ताहिक करती ही हैं; लंदन में रहते भी अपनी जड़ों से जुड़ी हैं। लगातार लिखती पढ़ती रहती हैं, सक्रिय हैं। सच कहूं तो वे स्त्री जाति के लिए प्रेरणा पुंज ही हैं। वैश्विक परिवार के सभी सदस्य आपस में वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से जुड़े हैं और सबको जोड़ने के सेतु बने हैं प्रखर मेधा संपन्न श्री अनिल जी। वैश्विक हिंदी परिवार के बहुत से सद्स्यों के साथ आत्मीयता के सूत्रधार वे ही है।

साहित्य जगत को अपने रचना कर्म से पोषित करने वाली दिव्या जी को बहुत बहुत बधाई।

डॉ बीना शर्मा,

निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान-आगरा, अध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय हिंदी शिक्षण विभाग एवं ‘शैक्षिक उन्मेष’ ई-पत्रिका की संयोजक, दैनिक स्तम्भ ‘सफ़र जारी है’ (8 खंड) की लोकप्रिय लेखिका।

 

 

 

 

 

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