कथनी और करनी

कथनी और करनी

अलार्म घड़ी ने जैसे ही सुबह पांच बजे का अलार्म बजाया,परेश ने आधी नींद में ही घड़ी टटोल कर उसका अलार्म बंद किया।उठ जाऊं- न उठूं , इसी उधेड़बुन में पांच- सात मिनट जाया करके आखिर उठने का फैसला किया। रोज की भांति नित्य कर्म, स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा के कमरे में जो घुसे तो घंटे भर बाद भगवान से खुशकिस्मती और सलामती का वरदान लेकर ही निकले।
यह केवल आज की बात नहीं, ये रूटीन तो उनकी बचपन से ही है,जब माता-पिता के साथ पूजा में बैठा करते थे। बाद में विज्ञान की पढ़ाई की और विज्ञान के अध्यापक बन गये। पढ़ाई बचपन से रूढ़ हो चुके संस्कारों के मुकाबले कमजोर ही सिद्ध हुई, सो उन्होंने भगवान से लेन-देन का सिलसिला कायम रखा। भगवान को दस बीस रुपए की रिश्वत देकर बदले में सुख-समृद्धि जैसी अनमोल नियामतें ले लेना वैसे भी फायदे का काम है।
स्कूल के लिए निकलते हुए रास्ते में जितने भी मंदिर आते हैं, उनके समक्ष हार्न बजाते, पों-पों करते अपनी उपस्थिति दर्ज कराते चलते हैं।
स्कूल के गेट के दूसरी तरफ बंधी गाय उनके इंतजार में आंखें बिछाए रहती है, जो रोटी, चने की दाल और गुंथे हुए आटे के बदले ग्रहों की बुरी दृष्टि से इनकी रक्षा करती है।
स्कूल में पहुंच कर बच्चों को भगवान का प्रसाद बांटते हैं, तत्पश्चात ही पढ़ाने का काम शुरू होता है।
” विज्ञान वह ज्ञान है जिसे प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया जा सकता है और इसे तर्क की कसौटी पर परखा जाता है।” – परिभाषा बताते हुए बच्चों को निर्देश देते हैं कि हमारी पढ़ाई सिर्फ किताबों से रटने तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, हमें शिक्षा को अपने जीवन में, अपने दैनिक कार्य- व्यवहार में शामिल करना चाहिए।
इधर बच्चे बेचारे असमंजस में रहते हैं कि उनकी कौन सी बातें अपने जीवन में शामिल करें , वो जो किताब से पढ़ाते हैं या फिर वो जो उनके व्यवहार में दिखाई देती हैं।
अब बच्चे तो हमारे घर के भी वो नहीं करते, जो हम करने के उपदेश देते हैं। वे तो वही करते हैं, जो हमें करते हुए देखते हैं फिर चाहे वो मोबाइल चलाना हो या टेलीविजन देखना।

जितेन्द्र ” कबीर “
हिमाचल प्रदेश

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