मसीहा

मसीहा

“निगोड़ी न खुद सोती है न सोने देती है।पागल कुतिया सी चार दिन से रें रें रें रें लगा रखी है ।ऐ शब्बों जा ,उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दे ,कुछ तो आवाज़ कम आएगी । मेरा तो सर फटा जा रहा है ।”
” उसने चार दिन से खाना भी नहीं खाया है रजिया खाला ।”
“अरे मरजानी को मैंने मना किया क्या ? रोज़ थाली सजा के तो ले जाती है तू ,अब वो नहीं खाती ,उसकी फूटी किस्मत ।”
” किस्मत तो उसकी उसी दिन फूट गई थी , जब उसका सगा मामू उसे यहां बेच गया था ।”
” बड़ी हमदर्दी हो रही है तुझे उससे तो समझाती क्यों नहीं की जिद छोड़ दे।भाग तो सकती नहीं है यहाँ से,यब तो जीना यहीं है मरना यहीं है।गुस्सा आ गया मुझे तो कल ही गन्नु चौधरी के हवाले कर दूंगी ।उसकी तो लार टपक रही है,एड्वान्स भी दे दिया है उसने तो।”
गन्नु चौधरी का नाम सुनते ही शब्बो के बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई । कितना वहशी दरिंदा है चौधरी ।कैसे भूल सकती है वो भयानक रात जब इस हवेली में आने के दूसरे दिन ही उसे सजा संवार कर एक कमरे में बिठा दिया था। बाहर भयंकर बादल गरज रहे थे ,बिजली कड़क रही थी और कमरे में गन्नू चौधरी उसके सोलह वर्षीय कोमल जिस्म को शेर की तरह नोच रहा था । सुबह उसकी दुर्गत देख कर भी इस मोटी खाला को ज़रा भी तरस न आया था ,उल्टे दांत निपोर कर बोली थी ”चौधरी है बड़ा मस्त सांड़ ,जितने दाम लगाता है उतने वसूल लेता है।जा जाके हल्दी चन्दन लगवा ले सब ठीक हो जायेगा ।आदत डाल ले यहाँ तो रोज़ ही ऐसे जानवर आएंगे।”
शब्बो के दिल दिमाग में आरियाँ सी चल रही थी।सोचने लगी कि इस मोटी को मासूम लड़कियों की बद्दुआ भी नहीं लगती ,इसको खुदा भी सजा नहीं देता।उसकी आत्मा उसे झिंझोड़ रही थी,शिला बन चुके जज़्बात मोम की तरह पिघल कर उसे कुछ कठोर कर गुजरने के लिए उकसा रहे थे । खाला का साथ देकर कही वो भी तो गुनाह की भागीदार बन रही है।कुछ सोच कर वो रज़िया से बोली -”खाला आप नींद की गोली खा के सो जाओ वर्ना आपका बी पी बढ़ जायेगा।मैं पानी में गोली घोल कर दे देती हूँ जल्दी असर करेगी दवा।”
एक की जगह तीन गोली मिलाकर गिलास खाला को पकड़ा दिया।रज़िया बोली -” बस एक तू ही है शब्बो जो मेरा इतना ख्याल रखती है ।”
एक घंटे में ही खाला के खर्राटे बोलने लगे।सही गलत के चक्रव्यूह से जूझती शब्बो ने आखिर निर्णय ले ही लिया की हजार जिंदगियां बर्बाद होने से तो अच्छा है एक की बलि दे दी जाये।
आज जुम्मन पठान भी हवेली में नहीं है इससे अच्छा मौका फिर नहीं मिलेगा। अन्दर से गँड़ासा लाई और एक झटके में रज़िया खाला के गरदन पर जोरदार वार किया।खून का फौहारा निकल पड़ा।थर थर कांपने लगी ,इससे पहले तो उसने एक मुर्गी भी कभी नहीं हलाल करी थी। बुत बनी खड़ी थी जैसे उसकी ही धमनियाँ का लहू बह रहा हो।कुछ देर में ही भोर होने को थी ,उसके चेहरे पर ख़ुशी की चमक थी।आज सब लड़कियों की जिंदगी में एक नई सुबह आने को है ।थोड़ा संयत होने पर उसने कपड़े बदले ,मासूमा को उसके कमरे से निकाला और हॉल में गई जहाँ सभी लड़कियां सो रही थी।ज़ुम्मन पठान के शहर में न होने के कारण आज कोई ग्राहक कोठे पर नहीं था ।

”अरी नासपीटियों अब उठ भी जाओ ।आज तो रात भर चैन से सोई हो।खुशखबरी है तुम लोगों के लिए ।रात खाला बड़े अच्छे मूड में थी।बड़ी ऊँची ऊँची बातें कर रही थी पाप पुण्य की, खुदा का खौफ उन्हें सता रहा है अब। मुझसे बोली की शब्बो सब लड़कियों को सुबह सुबह यहाँ से निकाल दे ,अब मुझे धंधा नहीं कराना ।सबके लिए उन्होंने रुपये भी दिए हैं।बिना किसी सामान के दो दो करके यहाँ से निकलो ताकि बाहर किसी को शक न हो और ट्रेन ,बस कुछ भी पकड़ कर कही दूर चली जाओ।”

” खाला से मिल तो लें शब्बो आपा । ”

”अरे नहीं तुम लोगों को देख के उनका इरादा बदल गया तो सब यही रह जाओगी। इस मासूमा को भी इसके शहर का टिकट खरीद देना।”

“शब्बो आपा आप भी तो निकलो।”

“अरे नहीं , खाला का ध्यान कौन रखेगा ? मेरी तो उम्र बीत गई अब ,तुम लोगों की तो सारी जिंदगी पड़ी है । पर हाँ कोई भी अब ऐसे जहन्नुम में मत घुसना।मेहनत मज़दूरी बेशक करना पर इज़्ज़त से जीना।अब जल्दी करो ।” ‘

“शब्बो आपा हमारा शुक्रिया कह देना खाला को । उन्होंने बेशक हमें इस नर्क में धकेला था पर अब आज़ाद भी तो उन्ही ने किया ।पिन्जरे से निकाल कर खुला आसमान हमें दिया ,अल्लाह उन्हें लम्बी उमर बख्शे ।”

धीरे धीरे कर के सूरज की किरणों के रथ पर सवार होकर सभी उस अँधेरी रात से बाहर निकल उजास की ओर चली गई ।उन्हें पता भी नहीं चला कि उनकी जिंदगी को रोशन करने वाली खुद जेल की अंधेरी कोठरी में जा रही है । उजाला फ़ैल चुका था।हवेली के बाहर पुलिस की भीड़ थी,रजिया की लाश और शब्बो को पुलिस लेकर जा रही थी ।शब्बो के चेहरे पर ना कोई मलाल था ना खौफ,मसीहा का नूर था ।

श्रीमती मंजु श्रीवास्तव’मन’
कत्थक नृत्यांगना एवं साहित्यकार
वर्जीनिया ,अमेरिका

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