स्वर्णिम लेखनी

स्वर्णिम लेखनी

बहुत कठिन प्रश्न है यह कि मुंशी जी की कौन-सी रचना सर्वाधिक पसंद है और क्यों ?जिस लेखनी से कथा का अर्थ समझा व पढ़ने का सलीका आया वह है कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कलम। हर कहानी मन-मस्तिष्क पर अंकित। चाहे मजदूर हो या किसान, सूदखोर महाजन या खून चूसता जमींदार, सरकारी बाबू या पुलिस अधिकारी, जातिगत भेदभाव, कौमी एकता, सामाजिक संरचना व परिवार के तानेबाने या प्रेम में विषय जो भी चुना उसे अद्भुत तरीके से गुना और जब पाठक उसमें डूबा तब अनगिनत मोती लेकर उबरा उस सागर में से। ऐसे में किसी एक रचना का जिक्र बहुत मुश्किल है, परन्तु जब बात करनी हो किसी एक की तब मेरी वह रचना है ईदगाह। एक ऐसी कहानी जिसमें मुंशी जी ने अनगिनत भावों को बुनकर बेशकीमती चदरिया बुनी है। दादी-पोते के मधुर स्नेह के साथ उस समय की सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि से शुरू हुई यह कथा भावनात्मक रूप से उस जगह तक जा पहुंचती है जहाँ पाठक किंकर्तव्यविमूढ़ हर रेशे की मजबूती व सुन्दरता में बंधा पाता है स्वयं को। पैसों को बचाने का प्रसंग हो या चिमटे की उत्कृष्टता की दलीलें, बालमन से विकसित मस्तिष्क तक को संतुष्ट करती हैं। एक बच्चे का त्याग व दादी-पोते का आपसी प्रेम भी मन को भिगा जाता है। कितने उच्च स्तरीय विचार व सशक्त भावों की प्रस्तुति है यह कथा।
नमन मुंशी जी व उनकी स्वर्णिम लेखनी को।

मुकेश दुबे
कथाकार एवं उपन्यासकार
मध्यप्रदेश

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