गुरू की महिमा

गुरू की महिमा

गुरू हैं ज्ञान के सागर
गुरू हैं ध्यान के गागर
गुरू में लीन हों मन से
तो निखरे सद्बुद्धि का आखर

गुरू हैं सरस्वती उपासक
गुरू हैं देश के सुधारक
गुरू से दीक्षा लें सच्ची
तो बनते तम के ये उद्धारक

गुरू हैं युग के प्रणेता
गुरू हैं कर्म के अभिनेता
गुरू का श्लाघ्य ही ऐसा
जो बना दे हर शिष्य को सचेता

गुरू से निखरती है बुध्दि
गुरु से मिलती है शुद्धि
गुरू के चरणों में ही
तो मिलती सभ्यता की प्रबुद्धि

गुरू हैं जीवन उपवन माली
गुरू हैं मानवता के रखवाली
गुरू जो बीज रोपते हैं
उससे बिखरे जग में उजियाली

गुरू की हर मानव से आशा
गुरू की बस यही अभिलाषा
गुरू की शिक्षा से महके
सबके जीवन की परिभाषा

डॉ. अंजू त्रिपाठी
साहित्यकार
राजौरी गार्डेन ,नई दिल्ली

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