स्नेहमय व्यक्तित्व –ममता कालिया

स्नेहमय व्यक्तित्व –ममता कालिया

‘ममता कालिया, एक ऐसा नाम है जो हिंदी साहित्य लेखन में सर्व स्वीकृत है। उनका मुस्कुराता चेहरा और मिलनसारिता सभी को आकर्षित करती है।
मेरे पिता हिंदी के साहित्यकार और आचार्य रहे हैं उपकुलपति भी। अतः उनके कारण ममता जी के लेखन और स्वभाव से परिचित रही। इनकी जोड़ी हिंदी साहित्य में लोकप्रिय रही है कई बार मिलना भी हुआ। उन्हें पढ़ कर भी उन्हें जाना। हर विधा में उनका लेखन उपलब्ध ,उन्होंने स्त्री की छवि को उभारते हुए उसके संघर्ष और जीवन के सच को महत्व दिया है। कई बार उनकी दुविधा /समस्याएं भी।अपने संघर्ष में उनके पात्र अपने अस्तित्व और अस्मिता की तलाश करते हैं। मानसिक जड़ता को तोड़ कर बदलाव की अपेक्षा वह करते है। जिसके लिए आम सोच और दृष्टिकोण में परिवर्तन जरुरी है।


इंदौर के साहित्य सम्मेलनों में कई बार मिली उनसे। उस दौर को भी वह याद रखतीं हैं और प्रेम से पिताश्री को भी याद कर लेतीं हैं। यह मुझे बहुत अच्छा लगता है।उनसे आत्मीयता महसूस होती है। साथ ही उनकी बिना लाग लपेट के अपनी बात कहना भी प्रेरित करती है।वो अपने विचार को स्पष्टता से व्यक्त करती है। जो ऐसा आज दुर्लभ ही है।

ममता जी अनेक साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित हैं। उनका लिखा हुआ पढ़ना भी एक अनुभव है।
उनके स्वस्थ और सानंद जीवन के लिए उन्हें अनंत शुभकामनाऐं ।

महिमा शुक्ला
इंदौर भारत

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