हमारी धरती, हमारा स्वास्थ्य

हमारी धरती, हमारा स्वास्थ्य

मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है। जल, गगन, समीर, अग्नि, और पृथ्वी यानि कि भूमि। इन्हीं पंचत्तवों से पैदा होकर हम फिर इन्हीं में विलीन हो जाते हैं। उपनिषदों में, वेदों में तथा सभी धार्मिक ग्रंथों में वातावरण – धरती, जंगल, वायु, नदी की चर्चा एक मित्र की तरह होती है। जातक कथाओं में तो पशु प्राणियों की मनुष्यों की बोली भी बोलते हैं। धरती – और उसके अंग-वायु, मिट्टी, पानी – का हमारे स्वास्थ्य से बिल्कुल भवनात्मक संबध है। तभी तो जब ऋतुएँ बदलती हैं तो हमारे मिजाज भी बदलते हैं। बारिश में मन खुशनुमा, गर्मी में थोड़ा खीझा हुआ और जाड़ों में थोड़ा दबा दबा सा। वसंत ऋतु में तो जैसे पाँव जमीन पर ही नही पड़ते। हर जगह नई पौधों, फूलों से जैसे मन को पंख लग जाते है। एक नई उर्जा से मन जैसे भर जाता है। सब कुछ नया जो लगता है। धरती मानों ऋतुओं और मौसमों से हमारे मन-तन-मस्तिष्क को सुचारू रूप से चलाती रहती है।

पिछले दो सालों में कोरोना ने एक अप्रितम पाठ पढ़ाया – वो था प्रकृति और धरती से खिलवाड़ न करो मनुष्य। और ध्यान रखो अपने स्वास्थ्य का। कमरों में बंद रखकर जब अपने अंदर झाँका तो धरती के विराट रूप के दर्शन हो गए। ऐसे ना समझ लोगों की कमी नही है जो अभी तक धरती और स्वास्थ्य के संबंध को समझ नहीं पाएँ हैं।


धरती हमारा बोझ कब तक उठा सकती है? मानव जाति उसका दोहन करते नहीं थकता और यह क्षमादायिनी माँ मानव को एक और मौका देना नहीं भूलती। लेकिन अभी प्रदूषित पानी हवा और मिट्टी ने जैसे एक चेतावनी दे दी है- सँम्हलने की। धरती का अंर्तजल प्रदूषित हो रहा है क्योंकि गंदे नाले का पानी रिसकर भूमि में जाता है और वही सब्जी, फल, और अन्य माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करता है। भारत में फ्लुराइड तथा आर्सेनिक, जो कि प्राकृतिक रूप से करीब दस राज्यों के भू जल में पाएँ जाते हैं, एक बहुत बड़ी समस्या है। फ्लुराइड से दाँत, हड्डी खराब होते हैं और आर्सेनिक से त्वचा। चर्मरोग और कैंसर की संभवनांएँ भी बढ़ जाती है। धरती में पड़े इस विष को निकालने के लिए जागरूकता भी चाहिए और लोगों का सहयोग भी। सरकारी कार्यक्रमों में पिछले बीस सालों में प्रभावित राज्यों में पानी को साफ कर पीने योग्य बनाया जा रहा है। लोगों के सहयोग से ही यह हो पाएगा जबकि सब इसकी महत्ता को समझे और पानी ना बर्बाद करे।

मुझे लगता है प्रदूषण अभी हमारे स्वास्थ्य की सबसे बड़ी समस्या है। एक ‘ग्रीन गुड डीड’ एक अच्छा काम अगर रोज करें, जैसे जहाँ जरुरत ना हो कार या स्कूटर ना निकालें, पानी बचाएँ, पौधे लगाएँ, चिड़ियों को दाना डालें, सूखे पत्तों और किचन वेस्ट को जाम कर खाद बनाएँ तो शायद इस गंभीर समस्या से थोड़ी छूट मिल जाएगी। लेकिन इसके लिए 160 करोड़ देशवासी को मिलकर काम करना होगा। हमारा स्वास्थ्य हमारी स्वस्थ धरती पर आश्रित है। इस दोहरी रक्षा से ही अच्छा जीवन संभव है। और बेकाबू होते हुए जिंदगियों को बचाया जा सकता है।

डॉ. अमिता प्रसाद
कर्नाटक, भारत

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